आ भी जाओ, तुम जहां हो!
सत्य का चीर है अब दुःशासन के हवाले
ज़ालिम कौरव के हाथ में आबरू के लाले!
अब तो श्री राम भी हैं सियासत के हवाले
तस्वीर की तरह हैं ख़ामोश अब भीष्म व कृपा
दुर्योधन की सभा में द्रोण के मुंह पे हैं ताले
युधिष्ठिर, भीम, सहदेव, अर्जुन, निशब्द हर महारथी
कर दिया है मुझे मेरी क़िस्मत के हवाले
पड़ गए हैं आज मुल्क की आन के लाले
आ जाओ अब
हाथ में अपना सुदर्शन संभाले
कौरव सब अपने नापाक इरादे हटा ले
मेरे राम के नाम पर कोई किसी की जान न ले
मस्जिद की अज़ां पे मुस्काएं शिवाले
आ जाओ और बचाओ
उसी तरह से हमें
बिवाई से सुदामा को
जैसे बचाया तूने
हम भूले नहीं अब तक
तेरे करम के क़िस्से
वराह के दामन से
गज को छुड़ाया तूने
आ जाओ मेरी मदद को ऐ! बांसुरी वाले
लाज मुझ बेबस व बेकस की बचाने के लिए
आ जाओ मुझे इस ज़िल्लत से निकालो
कन्हैया तुम कहां हो?
आ जाओ, अब जहां हो!
आ जाओ कि अब तेरे सिवा
कोई नहीं अपना
तुम ही बचे हो धरती पर
प्यार के रखवाले
ओ मेरे कन्हैया!
ओ बांसुरी वाले!!
©Afroz Alam Sahil #AfrozKiNazm
नोट: बता दूं कि पत्रकार पीर मुहम्मद मूनिस ने 1920 के आस-पास एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था — ‘कन्हैया कहां हो?’ उनका एक लेख गोरखपुर से निकलने वाली पत्रिका ‘स्वदेश’ में छपा. मूनिस के इस लेख का ज़िक्र करते हुए प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी अपने संस्मरण में इस प्रकार करते हैं —‘भगवान् श्रीकृष्ण पर लिखे गए उनके लेखकी की तो बड़ी धूम मच गई थी. किसी मुसलमान के लिए उन दिनों श्री कृष्ण भगवान के विषय में इतने श्रद्धापूर्ण उदगार प्रकट करना ख़तरे से खाली नहीं था.’
तब से मैं हमेशा ये सोचा करता था की काश, मैं मूनिस की तरह कुछ लिख पाऊं. लेख तो लिखना शायद मेरे बस की बात नहीं, लेकिन ये नज़्म आज ज़रूर लिख डाली है. अब बस आप सबकी प्रतिक्रियाओं का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है. काश कोई बनारसीदास चतुर्वेदी आप सबके भी दरम्यान हो…